फैली सुहानी चाँदनी हर,बदतमीज़कीबदतमीज़ीहरिगीतिकाछन्दमें वृक्ष के पत्ते हिलें।सूखे पड़े दो होंठ के ये, पुष्प चाहूँ फिर खिलें।क्यों रुष्ट हो इस क्षण प्रिये तुम, ना करो शिकवे गिले।सोना नहीं है आज की इस, रात बिन तुमसे मिले।झुककर दिखा ना चूचियाँ यूँ, इस तरह अंदाज से।नारी तुँ होकर बेशरम हम, पुरुष लज्जित लाज से।चोली के हुक को छोड़कर तु, क्यों रखे ऐसे खुली।संयम हमारा तोड़ने पर, लग रहा तूँ है तुली।श्रृंगार सोलह कर लिया तन, कस्तुरी न्हाई सखी।हरने पुरुष के प्राण को मैं, आज हूँ आई सखी।पकड़े मुझे इतना नहीं जी, कोइ में सामर्थ है।ना हाथ आऊँ मैं किसी के, सब जतन ही व्यर्थ है।कन्दर्प है मेरा पिया मैं, हूँ पिया जी की रती।है प्रार्थना बनके रहूँ बस, मैं सदा उनकी सती।जादू करें वो सेज पर इस, भाँति आधी रात को।कैसे बताऊँ मैं सखी अब, राज़ की इस बात को।शब्दार्थकन्दर्प : काम के देवता अर्थात् कामदेवरती : कामदेव की पत्नीओढ़ो दुपट्टा गोरिया अब, यौवना तुम पर चढ़ी।कूल्हे भरावट ले रहें है, चूचि जाती है बढ़ी।कामुक छँटा भरने लगी है, मस्त इन नीगाह में।छेड़ेंगे बचके अब नहीं तुँ, जो चलेगी राह में।कामुक अदा के जाल से ये, दिल हमारा फाँसना।ये प्यार है या उम्र की तन, में दहकती वासना।क्या माँगती है ज्ञात है रे, बात ये गोरी मुझे।तू चाहती है लिंग जी भर, के चुदाना है तुझे।माँगू विकल होकर मगर वो, चूत ही देती नहीं।चोदे बिना संतान की तो, हो कभी खेती नहीं।लिंगों से डरकर भागती हैं, जो सुहागिन नारियाँ।आनन्द से वंचित रहें है, वो सदा बेचारियाँ।कोठे पे जाकर बैठ जा जो, चाह पैसों की लगी।सोती है कम तुँ रात को है, नींद आँखों से भगी।घर भर मिले चाहे यहाँ पर, कौड़ि के इतना मिले।संतुष्ट रहना सीख ले हाँ, धन तुझे जितना मिले।मुझको मिली ये चूत प्यारे, सुन बड़ी तक़दीर से।बँधकर नहीं रहते समाजों, की अगर जंज़ीर से।हम चोद ही देते अभी इस, माल को हर हाल में।बदलाव आ जाता कसम से, मस्त इसकी चाल में।वैज्ञानिकों का कुछ नया अब, एक अनुसंधान हो।चेहरा निरखकर लंड की औ, चूत की पहचान हो।इससे रूकेंगे हो रही बे, मेल की अब शादियाँ।भावार्थ :- इस रचना में रचनाकार बदतमीज की चाहत है कि आज के युग में कुछ ऐसी नई वैज्ञानिक खोज हो जिससे कि चेहरा देखते ही व्यक्ति के लंड और चूत की पहचान हो जाये। इससे आजकल हो रही बेमेल शादियाँ नहीं होगी। लम्बे लंड वाले गहरी चूत वाली शहजादियाँ चुन सकेंगे (और छोटे लंड वाले कम गहरी चूत वाली शहजादियाँ चुन सकेंगे) ।***इतना गरम वो हो गई थी, कि वो आगे बढ़ गई।मुझको पटककर झट हमारे, लंड ऊपर चढ़ गई।मुझको लगी वो चोदने ज्यों, चोदने लड़का लगे।बन जाय रंडी की तरह वो, आग उसकी जब जगे।_इतना पिलाया मधु मुझे मैं, तो नशे में चूर हूँ।मैं चल नहीं सकती कदम भर, इस तरह मजबूर हूँ।मुझको उठा ले गोद में दे, सेज पर मुझको लिटा।आ मेरे उपर लेट तूँ भी, थकन अपनी ले मिटा।_ये आह उह मत कीजिए अब, कह रहा हूँ आपसे।अच्छा रहेगा जो चुदाये, आप यदि चुपचाप से।ऐसी जगह है ये कि सुन, लेगे सड़क के लोग जी।आ जाएँगे ये देखने कि, हो रहा संभोग जी।_है गोरियों से सौ गुना ये, रूप सुन्दर साँवला।तेरे नितम्बों ने किया है, अनगिनत को बावला।चूची सुई सी चुभ रही है , आज मेरे आँख में।तूँ सुन्दरी बस एक ही है, रे हजारों लाख में।_वो याद है तेरी बड़ी इन, चूचियों से खेलना।वो याद है साबुन लगाकर, चूत तेरी पेलना।बिसरे हुए हर खाब को तूँ, दे जरा फिर से सजा।आजा चुदा ले और भी अब, दुँगा पहले से मजा।_इस्केल लेकर हर घड़ी मत, लंड को नापा करो।आकार जितना भी रहे बस, चूत में चापा करो।गर तीन इंची से चुदे तो, भी मजा खुब पाएँगी।चोदो अगर तुम ठीक से तो, राँड भी ठण्डाएँगी।_आहट किसी की मिल रही ये, शान्त चुप सी रात है।मेरे बगल के भवन में दो, लोग करते बात हैं।चर-मर पलँग की सुन रहा हूँ, सारी दुनिया सो रही।मुझको लगे हाँ जोर से अब, तो चुदाई हो रही।_शरमा रही सकुचा रही है जुल्म जुल्मी ढाहती।उपर से ना ना कह रही पर आज चुदना चाहती।गंगा के जल में देखिए ये रंग सी घोली बने।गोरी चुदक्कड़ है बहुत बस व्यर्थ ही भोली बने।_चैना गया नैना मिलाके, उनके मुख अरबिन्द से।उनके सुमन की खोज में सब, फिर रहे मीलिन्द से।कच्चे कसाये चोलि में दो , मधुर मधुर रसाल हैं।लाली अधर पर सो रही है, मृदु कोमल गाल हैं।_शब्दार्थमीलिन्द :- मिलिन्द (भौंरा)रसाल :- आम_अवसर मिले न छोड़ना दो, देह के संयोग का।हो जो सुरक्षा साथ में तो, है मजा संभोग का।कंडोम धारण के बिना ना, कूदना मैदान में।सम्भव है शत्रू रोग भरकर, चल रहा हो बान में।***मैं तो कभी इस चूत के ही, चाह में रहता नहीं।मैं आदती हूँ मूठ का ये, झूठ मैं कहता नहीं।उस दिन घुसाऊँगा करूँगा, पूर्ण अपनी चाह मैं।जिस दिन कुँवारा ना रहूँगा, जब करूँगा ब्याह मैं।_ना देबु हमके बूर त का, डलबू तूँ अचार हो।नाहीं चोदईबू त सुनऽ हो, जाइ बुर बेकार हो।जेतना चुदईबू ओ-तने, जोबन तोहर बनल रही।तोरा उपर जग के सबे ही, मर्द लोगि ढहल रही।_तूँ लेट ऐसे रेत पर ज्यों सोइ रहती है नदी।परिणाम की चिन्ता नहीं कर देख ना नेकी बदी।तूँ भी जवाँ मैं भी जवाँ फिर कमी है किस बात की।चुदम्म चुदाई जोर से हो माँग है इस रात की।_तूँ लेट ऐसे रेत पर ज्यों सोइ रहती है नदी।परिणाम की चिन्ता नहीं कर देख ना नेकी बदी।तूँ भी जवाँ मैं भी जवाँ फिर कमी है किस बात की।चुदम्म चुदाई जोर से हो माँग है इस रात की।_ना पी रही पानी नहीं वो, घास चारा खा रही।गइया जरा बीमार है ना, दूध वो दे पा रही।कैसे बनेगा चाय किससे, दूध मैं ऊधार लूँ।आदेश दें तो चूचियों से, दूध अब मैं गार लूँ।_चुम्बन से मन भरता नहीं है, और भी कुछ कीजिए।लँड डालने खातिर कभी इस, चूत को दे दीजिए।जोबन बहुत बहुमूल्य है ना, दीजिए इसको सजा।चुदकर मुझे भी दीजिए खुद, लीजिए मुझसे मजा।_मन में प्रणय की अब तरंगें, उठ रहीं आवेग से।छाती में अस्पन्दन चले हैं, तीव्र अति उद्वेग से।मालिन मुझे भी फूल दे दे, जिस तरह सबको दिए।सैय्या सजाना है मिलन की, आज सैंया के लिए।_भंगुर हुई कौमारया सब, घात योनी सह गई।जब बाँध टूटा रक्त सरिता, छल छलाकर बह गई।मोहर लगा दी है पिया ने, प्रेम की हर अंग में।मन है प्रफुल्लित झूमता तन, उड़ रही हुँ उमंग में।_मन की सतह पर गिर पड़ी तूँ तो वही है दामिनी।मैं चाल तेरी देख रख दूँ नाम अब गजगामिनी।सोई हुई है अलक में घन अमावस की यामिनी।जागृत करे तू कामनाएँ है तुँ ऐसी कामिनी।_घिर घिर घटाएँ आ गई हैं ऋतु सुहानी हो चली।शीतल पवन झुर झुर बहे मन को लगे है अति भली।वातावरण शीतल हुआ तो तन में ज्वाला जल रही।प्रियवर बुझाओ आग मुझसे ताप ना जाये सही।
(责任编辑:हेनरिक क्लासेन)